¿Dónde puedo encontrar un resumen del poema Bhikshuk de Suryakant Tripathi?

कविता एवं उसकी व्याख्या निम्नलिखित है।

वह आता –

दो टूक कलेजे के करता पछताता

पथ पर आता।

पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,

चल रहा लकुटिया टेक,

मुट्ठी-भर दाने को – भूख मिटाने को

मुँह फटी-पुरानी झोली का फैलाता –

दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।

साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये,

बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,

और दाहिना दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाये।

भूख से सूख होंठ जब जाते

दाता-भाग्य-विधाता से क्या पाते? –

घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।

चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,

और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए।

व्याख्या: कवि जब फटेहाल भिखारी को रास्ते पर आता देखता है तो उसकी दीन-हीन अवस्था ही नहीं बलिक तार-तार मन: सिथति का भी चित्रा प्रस्तुत करता है। भिक्षा की याचना भिखारी खुशीपूर्वक नहीं करता बलिक ऐसा करते हुए उसका कलेजा चूर-चूर हो जाता है, उसके â दय के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। भीख माँगते हुए उसका मन पश्चाताप से भी भर उठता है। उसका शरीर अत्यन्त दुर्बल है और सिथति यह है कि उसके पेट और पीठ अलग-अलग दिखार्इ नहीं पड़ते बलिक दोनों मिलकर एक ही हो गये। वह लाठी लेकर चल रहा है। लाठी लेकर चलना जहाँ उसकी शारीरिक दुर्बलता की ओर संकेत करता है वहीं घुटनों की कमज़्ाोरी को भी दर्शाता है जो वृद्धावस्था का परिणाम भी हो सकती है। उसकी माँग मुटठी भर अन्न के दाने हैं जिनसे वह अपनी भूख मिटा सके। इसी आशा से वह अपनी फटी हुर्इ झोली को बार-बार फैला रहा है। परन्तु ऐसा करते हुए उसका जी टुकड़े-टुकड़े हो जाता है।

भिखारी के साथ में दो बच्चे भी हैं जो सदैव अपने हाथ फैलाये रखते हैं, बाँयें हाथ से वे अपने पेट पर हाथ फेरते रहते हैं मानों अपनी भूख का इज़हार कर रहे हों और ा ा की द रहत रहत ह ह ह ह हद दया का पात्रा वे बन जाएँ और कोर्इ इन्हें पैसा-दो-पैसा या रोटी दे दें। किसी व्यकित की भी दया-दृषिट जब उन पर नहीं पड़ती तो उनके ओंठ भूख के कारण सूख जाते हैं और दान-दाता से वे कुछ भी नहीं पाते, तो वे आँसुओं के घूँट पीकर रह जाते हैं। अभिप्राय यह है कि ये भिखारी इस आशा में कि कोर्इ उनकी भूख को मिटाने का प्रयत्न करेगा, सड़क पर इधर से उधर घूमते रहते हैं परन्तु कोर्इ इन पर दया नहीं दिखलाता और भूख के कारण व्यासे इनकी बहने बहने बहने लगतेव्य जिनको वे अपना भाग्य-विधाता मान बैठे हैं उनसे उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होता, निराशा ही हाथ लगती है। कभी उनकी नज़र सड़क पर पड़ी हुर्इ जूठी पत्तलों पर पड़ती है तो भूख के कारण वे उन्हें ही चाटने लगते हैं किन्तु यहाँ भी उनके प्रतिद्वन्दी के रूप में कुत्ते मौजूद हैं जिन्हें लगता है कि उनकी भूख का भागगकेकेखखखखखखख रहा है इसलिए वे भी उनके हाथों से उन जूठी पत्तलों को हथियाने के लिए अड़े हुए हैं। जीवन की कैसी विडम्बना है कि जो जानवरों के लिए भोग्य वस्तु है, वह भी उनके नसीब में नहीं है या उसके लिए भी उन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है। परन्तु कवि का â दय संवेदना से रिक्त नहीं है वह उन्हें आश्वासन देते हुए कहता है कि मेरे â दय में संवेदना का अमृत बह रहा है मैं उससे तुम्हें सींचकर तृप्त कर दूँगा, तुम्हारे सम्पूर्ण दुख-दर्द मैं करूँग धध उसके उसकेउसके होना होगा; तुम्हें अभिमन्यु जैसा जुझारू योद्धा होना होगा; जैसे अभिमन्यु चक्रव्यूह से बाहर निकलने के लिए जूझता रहा, उसी प्रकार तुम्हें भी इस गरीबी के चक्र से मुक्त होने के लिए प्रयत्नशील होना होगा। कहने का आशय यह है कि व्यकित को स्वयं भी अपनी दुरवस्था से मुक्त होने के लिए प्रयत्न करना पड़ता है दूसरे की सहायता ओर साथ भी तभी सार्थक हो सकते हैं।

Gracias por hacer esta pregunta.

Solo pude encontrar un enlace relacionado con esto: https://brainly.in/question/122902

Describe –

El poeta Suryakanth Tripathi Nirala explica que hay un verano caluroso en su vida que supera al obtener una primavera en su vida. Las hojas de las ramas se han secado debido al verano y ahora están floreciendo nuevamente. De esta manera, quiere quitarle el caluroso verano en su vida y traer una primavera que pueda curarlo.

Información extra –

Este es un poema que el poeta compuso sobre la muerte de su pequeña hija. Expresa sentimientos completos y está dedicado a su hija.

Eso es todo lo que pude encontrar. Lo siento, si me equivoco en alguna parte.

Gracias.